Shanuktala by the great poet Kalidas .... most famous saints of medieval India ... Chalukya (Solanki) dynasty of Gujarat ... Emperor Ashoka ... Emperor Harshavardhana ... Sikandar ... Most famous saints of medieval India

सिन्धु घाटी सभ्यता

 सिन्धु घाटी



सिन्धु घाटी सभ्यता (पूर्व हड़प्पा काल : ३३००-२५०० ईसा पूर्वपरिपक्व काल: २६००-१९०० ई॰पू॰उत्तरार्ध हड़प्पा काल: १९००-१३०० ईसा पूर्व)[कृपया उद्धरण जोड़ें] विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों मेंजो आज तक उत्तर पूर्व अफ़ग़ानिस्तान तीन शुरुआती कालक्रमों में से एक थीऔर इन तीन में सेसबसे व्यापक तथा सबसे चर्चित। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम ८,००० वर्ष पुरानी है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] यह हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

 

इसका विकास सिन्धु और घघ्घर/हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ। हड़प्पामोहनजोदड़ोकालीबंगालोथलधोलावीरा और राखीगढ़ी इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर २०१४ में भिरड़ाणा को सिन्धु घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया है। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यन्त विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं।

 

७वीं शताब्दी में पहली बार जब लोगो ने पंजाब प्रान्त में ईंटो के लिए मिट्टी की खुदाई की तब उन्हें वहाँ से बनी बनाई ईंटें मिली जिसे लोगो ने भगवान का चमत्कार माना और उनका उपयोग घर बनाने में किया उसके बाद १८२६ में चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने १८५६ में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। १८५६ में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बन्धुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में १८६१ में एलेक्जेण्डर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की गयी। १९०२ में लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग का महानिदेशक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा। १९२१ में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया व राखलदास बेनर्जी को मोहनजोदड़ो का खोजकर्ता माना गया।

 

यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी में फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिन्धु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है। प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता के १४०० केन्द्रों को खोजा जा सका है जिसमें से ९२५ केन्द्र भारत में है। ८० प्रतिशत स्थल [सिन्धु नदी]] और उसकी सहायक नदियों के आस-पास है। अभी तक कुल खोजों में से ३ प्रतिशत स्थलोंका ही उत्खनन हो पाया है

 

नामोत्पत्ति

सिन्धु घाटी सभ्यता का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक था॥ सिन्धु इण्डस नदी के किनारे बसने वाली सभ्यता थी और अपनी भौगौलिक उच्चारण की भिन्नताओं की वजहों से इस इण्डस को सिन्धु कहने लगेआगे चल कर इसी से यहाँ के रहने वाले लोगो के लिये हिन्दू उच्चारण का जन्म हुआ।[1] हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से इस सभ्यता के प्रमाण मिले हैं।[2] अतः विद्वानों ने इसे सिन्धु घाटी की सभ्यता का नाम दियाक्योंकि यह क्षेत्र सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में आते हैंपर बाद में रोपड़लोथलकालीबंगाबनावलीरंगपुर आदि क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले जो सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे। अतः कई इतिहासकार इस सभ्यता का प्रमुख केन्द्र हड़प्पा होने के कारण इस सभ्यता को "हड़प्पा सभ्यता" नाम देना अधिक उचित समझा गया जबकि हकीकत में इस नदी का नाम अन्दुस है।

 

इण्डियन पुरातत्व विभाग के महार्निदेशक जॉन मार्शल ने 1924 में अन्दुस तीन महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे।

 


समय (बी॰सी॰ई॰)

काल

युग

7570-3300

पूर्व हड़प्पा (नवपाषाण युग,ताम्र पाषाण युग)

7570–6200 BCE

भिरड़ाणा

प्रारंभिक खाद्य उत्पादक युग

7000–5500 BCE

मेहरगढ़ एक (पूर्व मृद्भाण्ड नवपाषाण काल)

5500-3300

मेहरगढ़ दो-छः (मृद्भाण्ड नवपाषाण काल)

क्षेत्रीयकरण युग

3300-2600

प्रारम्भिक हड़प्पा (आरंभिक कांस्य युग)

3300-2800

हड़प्पा 1 (रवि भाग)

2800-2600

हड़प्पा 2 (कोट डीजी भागनौशारों एकमेहरगढ़ सात)

2600-1900

परिपक्व हड़प्पा (मध्य कांस्य युग)

एकीकरण युग

2600-2450

हड़प्पा 3A (नौशारों दो)

2450-2200

हड़प्पा 3B

2200-1900

हड़प्पा 3C

1900-1300

उत्तर हड़प्पा (समाधी एचउत्तरी कांस्य युग)

प्रवास युग

1900-1700

हड़प्पा 4

1700-1300

हड़प्पा 5

प्रमुख नगर

 

1.     हड़प्पा (पंजाब पाकिस्तान)

2.    मोहेनजोदड़ो (सिन्ध पाकिस्तान लरकाना जिला)

3.   लोथल (गुजरात)

4.   कालीबंगा( राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में)

5.   बनवाली (हरियाणा के फतेहाबाद जनपद में)

6.   आलमगीरपुर( उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में)

7.    सूत कांगे डोर( पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में)

8.   कोट दीजी( सिन्ध पाकिस्तान)

9.   चन्हूदड़ो ( पाकिस्तान )

10.           1.     हड़प्पा (पंजाब पाकिस्तान)

2.    मोहेनजोदड़ो (सिन्ध पाकिस्तान लरकाना जिला)

3.   लोथल (गुजरात)

4.   कालीबंगा( राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में)

5.   बनवाली (हरियाणा के फतेहाबाद जनपद में)

6.   आलमगीरपुर( उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में)

7.    सूत कांगे डोर( पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में)

8.   कोट दीजी( सिन्ध पाकिस्तान)

9.   चन्हूदड़ो ( पाकिस्तान )

10.                                                                                                                                                                                                                                            सुरकोटदा (गुजरात के कच्छ जिले में)

                                                                                                                                                                                                                                                    

 हिन्दुकुश पर्वतमाला के पार अफगानिस्तान में

1.                 शोर्तुगोयी - यहाँ से नहरों के प्रमाण मिले है

2.                मुन्दिगाक जो महत्वपूर्ण है

भारत में]

भारत के विभिन्न राज्यों में सिन्धु घाटी सभ्यता के निम्न शहर है:- गुजरात

·                     लोथल

·                     सुरकोटडा

·                     रंगपुर

·                     रोजी

·                     मालवद

·                     देसूल

·                     धोलावीरा

·                     प्रभातपट्टन

·                     भगतराव

हरियाणा

·                     राखीगढ़ी

·                     भिरड़ाणा

·                     बनावली

·                     कुणाल

·                     मीताथल

पंजाब

·                     रोपड़ (पंजाब)

·                     बाड़ा

·                     संघोंल (जिला फतेहगढ़पंजाब)

महाराष्ट्र

·                     दैमाबाद।

·                     बनावली

·                     कुणाल

·                     मीताथल

महाराष्ट्र

·                     महाराष्ट्राबाद।

·                     सांगली

राजस्थान

·                     कालीबंगा

जम्मू कश्मीर

·                     माण्डा

उत्तर प्रदेश आलमगीरपुर,(मेरठ)

 



नगर निर्माण योजना

 

इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहाँ की विकसित नगर निर्माण योजना। हड़प्पा तथा मोहन् जोदड़ो दोनो नगरों के अपने दुर्ग थे जहाँ शासक वर्ग का परिवार रहता था। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहाँ ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे। इन नगर भवनों के बारे में विशेष बात ये थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे। यानि सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं और नगर अनेक आयताकार खण्डों में विभक्त हो जाता था। ये बात सभी सिन्धु बस्तियों पर लागू होती थीं चाहे वे छोटी हों या बड़ी। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो के भवन बड़े होते थे। वहाँ के स्मारक इस बात के प्रमाण हैं कि वहाँ के शासक मजदूर जुटाने और कर-संग्रह में परम कुशल थे। ईंटों की बड़ी-बड़ी इमारत देख कर सामान्य लोगों को भी यह लगेगा कि ये शासक कितने प्रतापी और प्रतिष्ठावान थे।

 

मोहनजोदड़ो का अब तक का सबसे प्रसिद्ध स्थल है विशाल सार्वजनिक स्नानागारजिसका जलाशय दुर्ग के टीले में है। यह ईंटो के स्थापत्य का एक सुन्दर उदाहरण है। यह 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है। दोनो सिरों पर तल तक जाने की सीढ़ियाँ लगी हैं। बगल में कपड़े बदलने के कमरे हैं। स्नानागार का फर्श पकी ईंटों का बना है। पास के कमरे में एक बड़ा सा कुआँ है जिसका पानी निकाल कर होज़ में डाला जाता था। हौज़ के कोने में एक निर्गम (Outlet) है जिससे पानी बहकर नाले में जाता था। ऐसा माना जाता है कि यह विशाल स्नानागार धर्मानुष्ठान सम्बन्धी स्नान के लिए बना होगा जो भारत में पारम्परिक रूप से धार्मिक कार्यों के लिए आवश्यक रहा है। मोहन जोदड़ो की सबसे बड़ा संरचना है - अनाज रखने का कोठारजो 45.71 मीटर लम्बा और 15.23 मीटर चौड़ा है। हड़प्पा के दुर्ग में छः कोठार मिले हैं जो ईंटों के चबूतरे पर दो पाँतों में खड़े हैं। हर एक कोठार 15.23 मी॰ लम्बा तथा 6.09 मी॰ चौड़ा है और नदी के किनारे से कुछ एक मीटर की दूरी पर है। इन बारह इकाईयों का तलक्षेत्र लगभग 838.125 वर्ग मी॰ है जो लगभग उतना ही होता है जितना मोहन जोदड़ो के कोठार का। हड़प्पा के कोठारों के दक्षिण में खुला फर्श है और इसपर दो कतारों में ईंट के वृत्ताकार चबूतरे बने हुए हैं। फर्श की दरारों में गेहूँ और जौ के दाने मिले हैं। इससे प्रतीत होता है कि इन चबूतरों पर फ़सल की दवनी होती थी। हड़प्पा में दो कमरों वाले बैरक भी मिले हैं जो शायद मजदूरों के रहने के लिए बने थे। कालीबंगां में भी नगर के दक्षिण भाग में ईंटों के चबूतरे बने हैं जो शायद कोठारों के लिए बने होंगे। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि कोठार हड़प्पा संस्कृति के अभिन्न अंग थे।

 

हड़प्पा संस्कृति के नगरों में ईंट का इस्तेमाल एक विशेष बात हैक्योंकि इसी समय के मिस्र के भवनों में धूप में सूखी ईंट का ही प्रयोग हुआ था। समकालीन मेसोपेटामिया में पक्की ईंटों का प्रयोग मिलता तो है पर इतने बड़े पैमाने पर नहीं जितना सिन्धु घाटी सभ्यता में। मोहन जोदड़ो की जल निकास प्रणाली अद्भुत थी। लगभग हर नगर के हर छोटे या बड़े मकान में प्रांगण और स्नानागार होता था। कालीबंगा के अनेक घरों में अपने-अपने कुएँ थे। घरों का पानी बहकर सड़कों तक आता जहाँ इनके नीचे मोरियाँ (नालियाँ) बनी थीं। अक्सर ये मोरियाँ ईंटों और पत्थर की सिल्लियों से ढकीं होती थीं। सड़कों की इन मोरियों में नरमोखे भी बने होते थे। सड़कों और मोरियों के अवशेष बनावली में भी मिले हैं।

 


आर्थिक जीवन

सिन्धु सभ्यता की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थीकिंतु व्यापार एव पशुपालन भी प्रचलन में था। यहीं के निवासियों से विश्व में सबसे पहले कपास की खेती करना शुरू कियेंजिसे यूनान के लोगों ने सिन्डन कहने लगेंयहाँ के लोग आवश्यकता से अधिक अनाज का उत्पादन करते थेइसके अलावे कपडा जौहरी का काममनक का काम भी प्रचलित था जिसे विदेशो में निर्यात[3] किया जाता था|

 

कृषि एवं पशुपालन

आज के मुकाबले सिन्धु प्रदेश पूर्व में बहुत उपजाऊ था। ईसा-पूर्व चौथी सदी में सिकन्दर के एक इतिहासकार ने कहा था कि सिन्ध इस देश के उपजाऊ क्षेत्रों में गिना जाता था। पूर्व काल में प्राकृतिक वनस्पति बहुत थीं जिसके कारण यहाँ अच्छी वर्षा होती थी। यहाँ के वनों से ईंटे पकाने और इमारत बनाने के लिए लकड़ी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल में लाई गई जिसके कारण धीरे-धीरे वनों का विस्तार सिमटता गया। सिन्धु की उर्वरता का एक कारण सिन्धु नदी से प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ भी थी। गाँव की रक्षा के लिए खड़ी पकी ईंट की दीवार इंगित करती है बाढ़ हर साल आती थी। यहाँ के लोग बाढ़ के उतर जाने के बाद नवंबर के महीने में बाढ़ वाले मैदानों में बीज बो देते थे और अगली बाढ़ के आने से पहले अप्रैल के महीने में गेहूँ और जौ की फ़सल काट लेते थे। यहाँ कोई फावड़ा या फाल तो नहीं मिला है लेकिन कालीबंगा की प्राक्-हड़प्पा सभ्यता के जो कूँट (हलरेखा) मिले हैं उनसे आभास होता है कि राजस्थान में इस काल में हल जोते जाते थे।

 

सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गेंहूजौराईमटरज्वार आदि अनाज पैदा करते थे। वे दो किस्म की गेँहू पैदा करते थे। बनावली में मिला जौ उन्नत किस्म का है। इसके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे। सबसे पहले कपास भी यहीं पैदा की गई। इसी के नाम पर यूनान के लोग इस सिण्डन (Sindon) कहने लगे। हड़प्पा एक कृषि प्रधान संस्कृति थी पर यहाँ के लोग पशुपालन भी करते थे। बैल-गायभैंसबकरीभेड़ और सूअर पाला जाता था। हड़प्पाई लोगों को हाथी तथा गैंडे का ज्ञान था।

 

पशु-पालन

हड़प्पा सभ्यता के लोगों का दूसरा व्यवसाय पशु-पालन था। यह लोग दूधमांस उनके कृषि के कार्य और भार ढोने के लिए इनका प्रयोग किया करते थे।

 

यह लोग गायभैंसभेड़बकरीबैलकुत्तेबिल्लीमोरहाथीशुअरबकरी व मुर्गियाँ पाला करते थे। इन लोगों को घोड़े और लोहे की जानकारी नहीं थी। हड़पपा के लोग ताँबा खेतडी (राजस्थान) तथा बलूचिस्तान से प्राप्त करते थेव सोना कर्नाटक तथा अफगानिस्तान से प्राप्त करते थे |

उद्योग-धन्धे

यहाँ के नगरों में अनेक व्यवसाय-धन्धे प्रचलित थे। मिट्टी के बर्तन बनाने में ये लोग बहुत कुशल थे। मिट्टी के बर्तनों पर काले रंग से भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बनाये जाते थे। कपड़ा बनाने का व्यवसाय उन्नभी निर्यात होता था। जौहरी का काम भी उन्नत अवस्था में था। मनके और ताबीज बनाने का कार्य भी लोकप्रिय थाअभी तक लोहे की कोई वस्तु नहीं मिली है। अतः सिद्ध होता है कि इन्हें लोहे का ज्ञान नहीं था।

 

व्यापार

यहाँ के लोग आपस में पत्थरधातु शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे। एक बड़े भूभाग में ढेर सारी सील (मृन्मुद्रा)एकरूप लिपि और मानकीकृत माप तौल के प्रमाण मिले हैं। वे चक्के से परिचित थे और सम्भवतः आजकल के इक्के (रथ) जैसा कोई वाहन प्रयोग करते थे। ये अफ़ग़ानिस्तान और ईरान (फ़ारस) से व्यापार करते थे। उन्होंने उत्तरी अफ़गानिस्तान में एक वाणिज्यिक उपनिवेश स्थापित किया जिससे उन्हें व्यापार में सहूलियत होती थी। बहुत सी हड़प्पाई सील मेसोपोटामिया में मिली हैं जिनसे लगता है कि मेसोपोटामिया से भी उनका व्यापार सम्बन्ध था। मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलुहा के साथ व्यापार के प्रमाण मिले हैं साथ ही दो मध्यवर्ती व्यापार केन्द्रों का भी उल्लेख मिलता है - दिलमुन और माकन। दिलमुन की पहचान शायद फ़ारस की खाड़ी के बहरीन के की जा सकती है।

 

राजनैतिक जीवन

इतना तो स्पष्ट है कि हड़प्पा की विकसित नगर निर्माण प्रणालीविशाल सार्वजनिक स्नानागारों का अस्तित्व और विदेशों से व्यापारिक संबंध किसी बड़ी राजनैतिक सत्ता के बिना नहीं हुआ होगा पर इसके पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं कि यहाँ के शासक कैसे थे और शासन प्रणाली का स्वरूप क्या था। लेकिन नगर व्यवस्था को देखकर लगता है कि कोई नगर निगम जैसी स्थानीय स्वशासन वाली संस्था थी।

 

धार्मिक जीवन

 

हड़प्पा से चित्रित मिट्टी के बर्तनों के कलश1900-1300 ईसा पूर्व

हड़प्पा में पकी मिट्टी की स्त्री मूर्तिकाएँ भारी संख्या में मिली हैं। एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है। विद्वानों के मत में यह पृथ्वी देवी की प्रतिमा है और इसका निकट सम्बन्ध पौधों के जन्म और वृद्धि से रहा होगा। इसलिए मालूम होता है कि यहाँ के लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थे जिस तरह मिस्र के लोग नील नदी की देवी आइसिस् की। लेकिन प्राचीन मिस्र की तरह यहाँ का समाज भी मातृ प्रधान था कि नहीं यह कहना मुश्किल है। कुछ वैदिक सूत्रो में पृथ्वी माता की स्तुति हैधोलावीरा के दुर्ग में एक कुआँ मिला है इसमें नीचे की तरफ जाती सीढ़ियाँ है और उसमें एक खिड़की थी जहाँ दीपक जलाने के सबूत मिलते है। उस कुएँ में सरस्वती नदी का पानी आता थातो शायद सिन्धु घाटी के लोग उस कुएँ के जरिये सरस्वती की पूजा करते थे।

 

सिन्धु घाटी सभ्यता के नगरों में एक सील पाया जाता है जिसमें एक योगी का चित्र है या मुख वालाकई विद्वान मानते है कि यह योगी शिव है। मेवाड़ जो कभी सिन्धु घाटी सभ्यता की सीमा में था वहाँ आज भी मुख वाले शिव के अवतार एकलिंगनाथ जी की पूजा होती है। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपने शवों को जलाया करते थेमोहन जोदड़ो और हड़प्पा जैसे नगरों की आबादी करीब 50 हज़ार थी पर फिर भी वहाँ से केवल 100 के आसपास ही कब्रें मिली है जो इस बात की और इशारा करता है वे शव जलाते थे। लोथलकालीबंगा आदि जगहों पर हवन कुण्ड मिले है जो की उनके वैदिक होने का प्रमाण है। यहाँ स्वास्तिक के चित्र भी मिले है।

 

कुछ विद्वान मानते है कि हिन्दू धर्म द्रविडो का मूल धर्म था और शिव द्रविडो के देवता थे जिन्हें आर्यों ने अपना लिया। कुछ जैन और बौद्ध विद्वान यह भी मानते है कि सिन्धु घाटी सभ्यता जैन या बौद्ध धर्म के थेपर मुख्यधारा के इतिहासकारों ने यह बात नकार दी और इसके अधिक प्रमाण भी नहीं है।

 

प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया में पुरातत्वविदों को कई मन्दिरों के अवशेष मिले है पर सिन्धु घाटी में आज तक कोई मन्दिर नहीं मिलामार्शल आदि कई इतिहासकार मानते है कि सिंधु घाटी के लोग अपने घरो मेंखेतो में या नदी किनारे पूजा किया करते थेपर अभी तक केवल बृहत्स्नानागार या विशाल स्नानघर ही एक ऐसा स्मारक है जिसे पूजास्थल माना गया है। जैसे आज हिन्दू गंगा में नहाने जाते है वैसे ही सैन्धव लोग यहाँ नहाकर पवित्र हुआ करते थे।

शिल्प और तकनीकी ज्ञान

यद्यपि इस युग के लोग पत्थरों के बहुत सारे औजार तथा उपकरण प्रयोग करते थे पर वे काँसे के निर्माण से भली-भाँति परिचित थे। ताम्बे तथा टिन मिलाकर धातुशिल्पी कांस्य का निर्माण करते थे। हालाँकि यहाँ दोनो में से कोई भी खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं था। सूती कपड़े भी बुने जाते थे। लोग नाव भी बनाते थे। मुद्रा निर्माणमूर्ति का निर्माण के साथ बरतन बनाना भी प्रमुख शिल्प था।

 

प्राचीन मेसोपोटामिया की तरह यहाँ के लोगों ने भी लेखन कला का आविष्कार किया था। हड़प्पाई लिपि का पहला नमूना 1853 ई॰ में मिला था और 1923 में पूरी लिपि प्रकाश में आई परन्तु अब तक पढ़ी नहीं जा सकी है। लिपि का ज्ञान हो जाने के कारण निजी सम्पत्ति का लेखा-जोखा आसान हो गया। व्यापार के लिए उन्हें माप तौल की आवश्यकता हुई और उन्होनें इसका प्रयोग भी किया। बाट के तरह की कई वस्तुएँ मिली हैं। उनसे पता चलता है कि तौल में 16 या उसके आवर्तकों (जैसे - 16, 32, 48, 64, 160, 320, 640, 1280 इत्यादि) का उपयोग होता था। दिलचस्प बात ये है कि आधुनिक काल तक भारत में रुपया 16 आने का होता था। किलो में पाव होते थे और हर पाव में कनवां यानि एक किलो में कुल 16 कनवाँ।


अवसान

यह सभ्यता मुख्यतः 2600 ई॰पू॰ से 1900 ई॰पू॰ तक रही। ऐसा आभास होता है कि यह सभ्यता अपने अन्तिम चरण में ह्रासोन्मुख थी। इस समय मकानों में पुरानी ईंटों के प्रयोग की जानकारी मिलती है। इसके विनाश के कारणों पर विद्वान सहमत नहीं हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के अवसान के पीछे विभिन्न तर्क दिये जाते हैं जैसे: आक्रमणजलवायु परिवर्तन एवं पारिस्थितिक असन्तुलनबाढ़ तथा भू-तात्विक परिवर्तनमहामारीआर्थिक कारण आदि। ऐसा लगता है कि इस सभ्यता के पतन का कोई एक कारण नहीं था बल्कि विभिन्न कारणों के मेल से ऐसा हुआ। जो अलग-अलग समय में या एक साथ होने कि सम्भावना है। मोहनजोदड़ो में नग‍र और जल निकास कि व्यवस्था से महामारी कि सम्भावना कम लगती है। भीषण अग्निकान्ड के भी प्रमाण प्राप्त हुए है। मोहनजोदड़ो के एक कमरे से 14 नर कंकाल मिले है जो आक्रमणआगजनीमहामारी के संकेत है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

 

अधिकांश विद्वानो के मतानुसार इस सभ्यता का अंत बाढ़ के प्रकोप से हुआ। चूँकि सिंधु घाटी सभ्यता नदियों के किनारे-किनारे विकसित हूईइसलिए बाढ़ आना स्वाभाविक थाअतः यह तर्क सर्वमान्य हैं। परन्तु कुछ विद्वान मानते है कि केवल बाढ़ के कारण इतनी विशाल सभ्यता समाप्त नहीं हो सकती। इसलिए बाढ़ के अलावा भिन्न-भिन्न कारणों का समर्थन भिन्न-भिन्न विद्वान करते हैं जैसे - आग लग जानामहामारीबाहरी आक्रमण आदि।

 

हड़प्पा सभ्यता के पतन की व्याख्या करते हुए मॉर्टिमर व्हीलर ने "आर्य आक्रमण" की अवधारणा दी थी। किन्तु आरम्भ से ही इस विचार का खण्डन किया जाने लगा था।

 

अपने मत के पक्ष में व्हीलर महोदय ने कुछ पुरातात्विक तथा साहित्यिक प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने मोहनजोदड़ो से 26 ऐसे नर कंकालों का साक्ष्य प्रस्तुत किया जिनके सिर पर नुकीले अस्त्र के घाव चेंज थे प्रोग्राम हड़प्पा से कब्रगाह का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं तथा उसे आक्रमणकारी कैलाश बताते हैं उसी तरह साहित्यिक साक्ष्य के रूप में ऋग्वेद में वर्णित इंद्र तथा हरिरूपिया शब्द का दृष्टांत प्रस्तुत किया है। किंतु उनके द्वारा प्रस्तुत पुरातात्विक साक्ष्य पर्याप्त है। तथा साहित्यिक साक्ष्य संदिग्ध उदाहरण के लिए महज 26 कंकालों के आधार पर आर्य आक्रमण की अवधारणा तार्किक नहीं लगती है। विशेषकर इसलिए भी मोहनजोदड़ो नामक स्थल के पतन तथा वैदिक आर्यों के आगमन के बीच लगभग 300 से 400 वर्ष का काल अन्तर है। फिर नवीन शोध के आधार पर यह बात पुष्ट हो चुकी है कि कब्रगाह नर कंकाल इस स्थल के पतन के बाद के काल के हैं। अतः जहां तक ऋग्वेद के उद्धरण का सवाल है हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह किसी एक काल की कृति नहीं है वरन इसे बहुत बाद में लिखित रूप में दिया गया था। यह वजह कि हम माटी में व्हीलर  उपयुक्त कथन से सहमत नहीं हो सकते हैं।




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