हर्यक वंश
राजधानी राजगृह
बाद में, पाटलिपुत्र
सरकार राजतंत्र
हर्यक वंश की स्थापना ५४४ ई. पू. में बिम्बिसार के द्वारा की गई। बिम्बिसार ने गिरिव्रज (राजगृह) को अपनी राजधानी बनायी। इसने वैवाहिक सम्बन्धों (कौशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला, वैशाली के चेटक की पुत्री चेल्लना एवं पंजाब की राजकुमारी क्षेमा) से शादी की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। जैन साहित्य में बिम्बिसार का नाम 'श्रेणिक' मिलता है। सूच्य है कि भर क्षत्रिय राजा था।
विस्तार
बिम्बिसार (५४४ ई. पू. से ४९२ ई. पू.)- बिम्बिसार एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर राज्य को फैलाया। सबसे पहले उसने लिच्छवि गणराज्य के शासक चेतक की पुत्री चेल्लना के साथ विवाह किया। दूसरा प्रमुख वैवाहिक सम्बन्ध कौशल राजा प्रसेनजीत की बहन महाकौशला के साथ विवाह किया। इसके बाद मुद्र देश(आधुनिक पंजाब) की राजकुमारी क्षेमा के साथ विवाह किया।
बिम्बिसार
महावग्ग के अनुसार बिम्बिसार की ५०० रानियाँ थीं। उसने अवंति के शक्तिशाली राजा चन्द्र प्रद्योत के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाया। सिन्ध के शासक रूद्रायन तथा गांधार के मुक्कु रगति से भी उसका दोस्ताना सम्बन्ध था। उसने अंग राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था वहाँ अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा नियुक्त. किया था। बिम्बिसार महात्मा बुद्धका मित्र और संरक्षक था। विनयपिटक के अनुसार बुद्ध से मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म को ग्रहण किया, लेकिन जैन और ब्राह्मण धर्म के प्रति उसकी सहिष्णुता थी। बिम्बिसार ने करीब ५२ वर्षों तक शासन किया। बौद्ध और जैन ग्रन्थानुसार उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसे बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया था जहाँ उसका ४९२ ई. पू. में निधन हो गया।
बिम्बिसार ने अपने बड़े पुत्र “दर्शक" को उत्तराधिकारी घोषित किया था।
भारतीय इतिहास में बिम्बिसार प्रथम शासक था जिसने स्थायी सेना रखी।
बिम्बिसार ने राजवैद्य जीवक को भगवान बुद्ध की सेवा में नियुक्त किया था।
बौद्ध भिक्षुओं को निःशुल्क जल यात्रा की अनुमति दी थी।
बिम्बिसार की हत्या महात्मा बुद्ध के विरोधी देवव्रत के उकसाने पर अजातशत्रु ने की थी।
बिम्बसार ने बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर वेलुबन दान में दिया जिसके वर्णन विनयपिटक से मिलता है
आम्रपाली
यह वैशाली की नर्तकी एवं परम रूपवती कला प्रवीण गणिका थी। वो बुद्ध की परम उपासक थी । आम्रपाली के सौन्दर्य पर मोहित होकर बिम्बिसार उन्हें लिच्छवि से जीतकर राजगृह ले आया। उनसे विवाह किया । दोनों के संयोग से जीवक नामक पुत्र हुआ। बिम्बिसार ने जीवक को तक्षशिला में शिक्षा हेतु भेजा ।
अजातशत्रु
अजातशत्रु (४९२-४६० ई. पू.)- बिम्बिसार के बाद अजातशत्रु मगध के सिंहासन पर बैठा। इसके बचपन का नाम कुणिक था। भगवान बुद्ध के विरोधी देवदत्त के उकसाने पर इन्होने अपने पिता की हत्या कर गद्दी पर बैठा। अजातशत्रु ने अपने पिता के साम्राज्य विस्तार की नीति को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाया।
अजातशत्रु के सिंहासन मिलने के बाद वह अनेक राज्य संघर्ष एवं कठिनाइयों से घिर गया लेकिन अपने बाहुबल और बुद्धिमानी से सभी पर विजय प्राप्त की। महत्वाकांक्षी अजातशत्रु ने अपने पिता को कारागार में डालकर कठोर यातनाएँ दीं जिससे पिता की मृत्यु हो गई। इससे दुखित होकर कौशल रानी की मृत्यु हो गई।
कौशल संघर्ष
बिम्बिसार की पत्नी (कौशल) की मृत्यु से प्रसेनजीत बहुत क्रोधित हुआ और अजातशत्रु के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। पराजित प्रसेनजीत श्रावस्ती भाग गया लेकिन दूसरे युद्ध-संघर्ष में अजातशत्रु पराजित हो गया लेकिन प्रसेनजीत ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से कर काशी को दहेज में दे दिया।
वज्जि संघ संघर्ष
लिच्छवि राजकुमारी चेलना बिम्बिसार की पत्नी थी जिससे उत्पन्न. दो पुत्री हल्ल और बेहल्ल को उसने अपना हाथी और रत्नों का एक हार दिया था जिसे अजातशत्रु ने मनमुटाव के कारण वापस माँगा। इसे चेलना ने अस्वीकार कर दिया, फलतः अजातशत्रु ने लिच्छवियों के खिलाफ युद्ध घोषित कर दिया। वस्सकार से लिच्छवियों के बीच फूट डालकर उसे पराजित कर दिया और लिच्छवि अपने राज्य में मिला लिया।
मल्ल संघर्ष
अजातशत्रु ने मल्ल संघ पर आक्रमण कर अपने अधिकार में कर लिया। इस प्रकार पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बड़े भू-भाग मगध साम्राज्य का अंग बन गया।
अजातशत्रु ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्दी अवन्ति राज्य पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की।
अजातशत्रु धार्मिक उदार सम्राट था। विभिन्न. ग्रन्थों के आधार पर वह बौद्ध और जैन दोनों मत के अनुयायी माने जाते हैं लेकिन भरहुत स्तूप की एक वेदिका के ऊपर अजातशत्रु बुद्ध की वंदना करता हुआ दिखाया गया है।
उसने शासनकाल के आठवें वर्ष में बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अवशेषों पर राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया और ४८३ ई. पू. राजगृह की सप्तपर्णि गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया। इस संगीति में बौद्ध भिक्षुओं के सम्बन्धित पिटकों को सुतपिटक और विनयपिटक में विभाजित किया।
सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार उसने लगभग 32 वर्षों तक शासन किया और ४६० ई. पू. में अपने पुत्र उदयन द्वारा मारा गया था।
अजातशत्रु के शासनकाल में ही महात्मा बुद्ध 483 ई. पू. महापरिनिर्वाण तथा महावीर को भी कैवल्य (४६८ ई. पू. में) प्राप्त हुआ था।
उदायिन
अजातशत्रु के बाद ४६० ई. पू. मगध का राजा बना। बौद्ध ग्रन्थानुसार इसे पितृहन्ता लेकिन जैन ग्रन्थानुसार पितृभक्त कहा गया है। इसकी माता का नाम पद्मावती था।
उदायिन शासक बनने से पहले चम्पा का उपराजा था। वह पिता की तरह ही वीर और विस्तारवादी नीति का पालक था।
इसने पाटलिपुत्र (गंगा और सोन के संगम) को बसाया तथा अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र स्थापित की।
मगध के प्रतिद्वन्दी राज्य अवन्ति के गुप्तचर द्वारा उदयन की हत्या कर दी गई।
नागदशक एंव शिशुनाग
बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उदयन के तीन पुत्र अनिरुद्ध, मंडक और नागदशक थे। उद के पुत्रो ने राज्य किया। अन्तिम राजा नागदशक था। जो अत्यन्त विलासी और निर्बल था। शासनतन्त्र में शिथिलता के कारण व्यापक असन्तोष जनता में फैला। राज्य विद्रोह कर उनका सेनापति शिशुनाग राजा बना। इस प्रकार हर्यक वंश का अन्त और शिशुनाग वंश की स्थापना 412 ई.पू. में हुई।
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