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राजा पोरस

 

सिकंदर को कांटे की टक्कर देने वाले राजा पोरस कौन थे

हम बात कर रहे हैं राजा पोरस की. वो कौन थे, कहां के राजा थे और अक्सर कहानियों में सिकंदर और उनकी लड़ाई का ज़िक्र क्यों मिलता है, ये ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब रोचक हैं.

इतिहास में पोरस और सिकंदर की लड़ाई काफ़ी चर्चित है. पोरस और सिकंदर के युद्ध और उनकी दोस्ती के क़िस्से भी ख़ूब सुनाए जाते हैं. पोरस कौन थे और सिकंदर से उनकी दोस्ती किन वजहों से हुई उसके पीछे इतिहासकार कूटनीति की तरफ़ इशारा करते हैं.

किसके वंशज थे पोरस?

पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक राजा पोरस या पुरुवास का राज्य था. इसकी राजधानी मौजूदा लाहौर के आस-पास थी. राजा पोरस पोरवा के वशंज थे.उनका साम्राज्य वर्तमान पंजाब में झेलम और चेनाब नदियों तक (ग्रीक में हाइडस्पेश और एसीसेंस) था. पोरस का कार्यकाल 340 ईसा पूर्व से 315 ईसा पूर्व के बीच माना जाता है.

'पोरस एक शक्तिशाली राजा'

जिस तरह से आज हम भारत को देखते हैं उस तरह पहले एक देश नहीं था. अलग-अलग राज्य थे जिनमें से एक का शासक पोरस थे.

वो बताते हैं, ''पोरस का शासन क्षेत्र पंजाब में झेलम के आसपास था. लेकिन यहां जितने छोटे-छोटे राज्य थे उनमें पोरस को काफ़ी शक्तिशाली शासक माना जाता था.''

सिकंदर से टकराव क्यों हुआ?

इतिहासकार बताते हैं कि सिकंदर विश्व विजय पर निकले हुए थे. वो पोरस के राज्य तक पहुंच गए थे. सिकंदर के आगे जिसने सरेंडर नहीं किया, उनसे टकराव हुआ.

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर डीपी दुबे कहते हैं, ''326 ईसा पूर्व में सिकंदर और पोरस के बीच लड़ाई हुई थी.''

तक्षशिला के राजा ने सिकंदर के आगे घुटने टेक दिए और सिकंदर से पोरस पर आक्रमण करने के लिए कहा ताकि उनका राज्य विस्तार हो सके.

लेकिन पोरस ने वीरता के साथ लड़ाई लड़ी और काफ़ी संघर्ष के बाद पराजय हुई. इसमें सिकंदर की सेना को भी भारी नुक़सान पहुंचा.

इतिहास में मिले आंकड़ों के मुताबिक़, सिकंदर की सेना में 50 हज़ार से भी अधिक सैनिक थे जबकि पोरस के सैनिकों की संख्या 20 हज़ार के क़रीब थी. पोरस ने सिकंदर की सेना के सामने अपनी सेना के हाथी खड़े कर दिये, जिससे सिकंदर भी दंग थे.

हालांकि प्रो. दुबे यह भी मानते हैं कि सिकंदर का आक्रमण कभी भारत में हुआ ही नहीं. वो कहते हैं, ''मेरे हिसाब से सिकंदर का आक्रमण पाकिस्तान में हुआ था. सिकंदर की हिम्मत कभी सिंध नदी पार करने की नहीं हुई.''

सिकंदर और पोरस की दोस्ती कैसे हुई?

''जब पोरस हार गए तब उन्हें सिकंदर के सामने पेश किया गया. सिकंदर ने पोरस से सवाल किया कि उनके साथ कैसा बर्ताव किया जाए? इस सवाल के जवाब में पोरस ने सिकंदर से बड़े आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के साथ कहा कि ठीक वैसा, जैसा एक शासक दूसरे शासक के साथ करता है.''

''सिकंदर को उनका आत्मविश्वास से भरा जवाब पसंद आया और उसके बाद सिकंदर को महसूस हुआ कि उनकी सेना को यहां काफ़ी संघर्ष करना पड़ा है और नुक़सान झेलना पड़ा है.

इस तरह के नुक़सान और टकराव से बचने के लिए सिकंदर ने पोरस से दोस्ताना संबंध स्थापित किए ताकि आगे किसी तरह की मदद के लिए पोरस का साथ हासिल किया जा सके.''

 ''सिकंदर की मजबूरी और कूटनीतिक समझ थी जिस वजह से उन्होंने पोरस से व्यावहारिक तौर पर दोस्ताना संबंध रखे.''


कितना अहम है पोरस और सिकंदर का युद्ध?

 सिकंदर और पोरस का युद्ध तिथि निर्धारण के लिहाज से अहम रहा है.

वो कहते हैं, ''सिकंदर के आक्रमण के बाद भारतीय इतिहास में सुनिश्चित तिथिकरण का सिलसिला स्पष्ट हो जाता है और दूसरी बात ये कि यह एक सीमावर्ती क्षेत्र था. सिकंदर को भारत में घुसने से पहले काफ़ी संघर्ष करना पड़ा और जन-धन की हानि उठानी पड़ी. सिकंदर विश्व विजय के लिए निकले थे, लेकिन ये आसान नहीं था.''

''सिकंदर को पता था कि पूर्व में भी काफ़ी राज्य हैं जिनका सामना करना पड़ेगा और सिकंदर की सेनाएं थक चुकी थीं, उनमें निराशा का भाव था. वो वापस लौटना चाहते थे, ये समस्या सिकंदर के लिए चिंता का विषय थी. वहीं पर एक तरह से सिकंदर के विजय अभियान पर ब्रेक लग गया और वो पूर्व के भारत की तरफ़ अपना सैनिक अभियान जारी नहीं रख पाए.''

पोरस और सिकंदर की लड़ाई को मामूली बताते हैं. वो कहते हैं, ''ये सब छोटी-छोटी घटनाएं हैं, इनको कोई अहमियत नहीं दी जानी चाहिए.''



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